Friday, July 25, 2014

मनमोहन तेरा गुनाहगार हूँ -विनय भरत

जब से मोदी को समझने लगा हूँ
मनमोहन तुम याद आने लगे हो
जब हुई ये खता नादान था मैं
तेरे क़त्ल की रात का गुनाहगार हूँ मैं

नयी सुबह की तलाश थी
ख़बरें दिन रात तेरे खिलाफ थीं
नए सब्जबाग का घोला था ज़हर
नए खुदा की हमें तलाश थी
जब मिला वो इस पैरहन में
रहता हो कोई फ़रिश्ता जिसमें
उसका सजदा उसका झुकना
थी अगर कुछ तो सिर्फ अदा थी

 लुटा हूँ मैं ,शर्मिंदा हूँ
मोदी की चाक़ू थी,हाथ मेरे थे
तेरे क़त्ल का मनमोहन
मैं गुनाहगार हूँ।

(c) विनय भरत

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