Thursday, November 22, 2012

बाल ठाकरे को श्रद्धांजलि ..

बाल ठाकरे आज गुजर गए. लंबी पारी खेली उन्होंने. एक सफल पारी. उनके गुजर जाने के बाद हममें से कईयों ने सोसल साइट्स पर अपने जुबान को खोलना शुरू किया है. मरे हुए टाइगर का नाख़ून और पूंछ का बाल खिंच कर हम अपनी बहादुरी दिखा रहे हैं. हो सकता है, ये उस जनता कि भंडास (कथार्सिस) या पर्जेशन हो जो अपने क
िसी क्रिमिनल नेता को संसद का रास्ता चुपचाप दिखा देते हैं-या तो भय से उनके लिए वोट कर, या घर पर दुबक कर किसी चमत्कार के प्रत्याशा में .मैंने उनके जीते-जी एक अखबार में उनके एक कृत्य की आलोचना की थी जब उन्होंने जया बच्चन को माफ़ी मांगने पर मजबूर किया था.पर ऐसा नहीं होता कि एक इंसान हर वक्त गलत होता है. हम ये क्यों भूल रहे हैं कि मुंबई जैसे जगह पर बाला साहब का होना एक मजबूत सुरक्षा दीवार के होने के समान था. कई चीजे ऐसी होती हैं, जिनका होना जिंदगी के लिए जरुरी होता है. सांप के काटे जाने के बाद उसी के टक्कर का जहर ही हमारी जिंदगी बचाता है. उसी प्रकार राजनीति में भी कभी -कभी इक्स्त्रिमिस्ट रिलिजियस फनातिसिज्म ( अतिवादी धार्मिक पागलपन) दूसरे इक्स्त्रिमिस्ट रिलिजिअस फनातिसिज्म को पैदा करता है. दरअसल ये एक एंटी-डोट का काम करता है. वो पश्चिमी भारत और भारत के व्यासायिक राजधानी मुंबई के सुरक्षा प्रहरी थे.एक अंजना खौफ़ था उनका. तिलक ने जिस प्रकार धर्म और राजनीति को हाथ पकड़ कर चलाना सिखाया, वो उसी स्कूल के छात्र थे. ये और बात है कि अहिस्ता –अहिस्ता उनके उत्तराधिकारियों ने एक बूढ़े हो रहे टाइगर का नाजायज़ फायदा उठाया, और उनके राजनीति के दर्शन को संकरा कर दिया. क्षेत्रीयता के ओर मोड़ दिया. ‘जय महाराष्ट्र’ का नारा बुलंद करने वाले लोगों की एक ऐसी फ़ौज खड़ी कर दी, जिसने कई मौकों पर ‘जय भारत’ कहना जरुरी नहीं समझा. जिस प्रकार बुद्ध के अनुयायी ही बुद्ध के व्यापक विस्तार को रोकने का कारण बने, या महवीर के अनुयाईयों ने जैन धर्म को महावीर से भी बौना कर दिया, उसी प्रकार बाला साहेब के फौलोवर्स ने अनजाने में बाला साहेब को मुंबई से बाहर फैलने नहीं दिया. पर, भगवान महावीर के दुर्गति के ठीक विपरीत, बाला साहेब का कद खुद में मुंबई से बड़ा रहा. अंत तक. ये एक कार्टूनिस्ट के खुद के बनाये कैरीकेचर का तिलिस्म था, या कुछ और..हमेशा एक रहस्य रहेगा. ( 4 days back ..)