बारह/बारह/बारह और बारिश के नाम
बाहर कोहरा घना है..
झोपडियों पर मासूम बच्चों की आंखे टंगी हैं/
इतनी अचानक बारिश की तैयारी इन्होने भी नहीं की थी..
अभी रात के अँधेरे में
इस झोपड़े की चिराग -नन्ही परी
निकली है चुनने
कूड़े के ढेर से प्लास्टिक् के टुकड़े
जिसकी चिप्पी से बचेगा
इस नन्ही का छोटा भाई बारिश की ठिठुरन से
...
खैर
वो कुछ न कुछ कर ही लेंगे
अपने मरने और जीने का इन्तेजाम
आइये
नौ बजने को हैं
हम देखें सोनी पर सपने
"कौन बनेगा करोड़पति" के साथ -
सुबह तक शायद ये बारिश लील जाये
कई "बन सकने वाले संभावनाओ से लबरेज करोड़पतियों " को
जिसकी खबर भी हमें ना हो -शायद
कि दुनिया ये हमारी
सिर्फ १२.१२.१२ को ही नहीं
बकायदा रोज समाप्त हो रही है..
रोज एक सभ्यता का अंत हो रहा है..
...
बारिश तो एक बहाना है..
वो ना भी हो तो ये सिलसिला मुसलसल जारी है..
What a combination, and combination of poems also. Liked it.
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