http://www.bhaskar.com/article/JHA-RAN-know-about-this-iitian-4008461.html
इस आईआईटियन को मिला ऐसा ज्ञान कि एक दिन कर दिया सब कुछ का त्याग!
विनय भरत। | Nov 05, 2012, 11:49AM IST
रांची .आज के इस युग में बाजार सर चढ़ कर बोल रहा है। शहर के सारे बच्चे और उनके माता-पिता अपने बच्चे को पढ़ा-लिखा कर मल्टी-नेशनल्स में नौकरी प्राप्त करने का सपना संजोते हैं। बच्चा होनहार निकल जाये और देश के सर्वोच्च शैक्षणिक संस्थान आईआई टी में दाखिला मिल जाये, तो मानों उन्हें सब मिल गया। इसके बाद ये आईआईटीयन मेनेजमेंट करें या किसी मल्टीनेशनल में ज्वाइन कर एक समृद्ध जिंदगी के स्वामी बने- अमूमन यही सबका ड्रीम होता है। पर पिछले दिनों मेरी मुलाकात एक ऐसे आईआईटीयन से हुई, जिसने महज 28 साल के उम्र में न सिर्फ देश-विदेश के नामी मल्टी-नेशनल्स में काम किया बल्कि उन नौकरियों के चकाचौंध के पीछे के सच को जाना भी, जिया भी. और फिर एक दिन इन्होने सब कुछ त्याग कर युवाओं के बीच शांति और ध्यान का मंत्र बाँटना शुरू किया। आज ये श्री श्री रविशंकर जी द्वारा स्थापित संस्था आर्ट ऑफ लिविंग के इंटरनेशनल प्रशिक्षक हैं। आज जब हम टेबल के नीचे से मिलने वाले 50 रुपये तक को नहीं छोड़ पाते, हमारे लिए ये जानना जरुरी लगा कि इस पूर्व आईआईटीअन से अपने शहर के युवाओं से परिचय कराया जाये। खास कर राँची और झारखण्ड के युवाओं से जहाँ आई आई टी के सपने बुनने वाले की तादाद सबसे ज्यादा है, और उन सपनो के टूटने पर अपनी इह-लीला समाप्त करने वालों की तादाद की प्रतिशत उस से भी ज्यादा. शायद इनका उत्तर उन कई युवाओं के लिए एक शबक होगा जो आई आई टी या फिर इन जैसे अन्य जैसे संस्थान में दाखिला न मिलने की वजह से आत्महत्या की ओर अग्रसर हैं।
पेश है विनय भरत से हुई उनकी बातचीत -
>आप अपने शैक्षणिक पृष्ठभूमि के बारे में बताएं?
मैं मूलत: भागलपुर का हूँ और अपनी उच्च शिक्षा आई आई टी ( बी एच यू ) से मेकैनिकल इंजीनियरिंग में प्राप्त किया है.
>अध्यात्म के क्षेत्र में आपकी रुझान किस उम्र में हुई?
ऐसे तो अध्यात्म में मेरी रुझान बचपन से थी, पर मैंने थोड़े समय बाद ये महसूस करना शुरू किया कि अध्यात्म से जुड़े कई लोग खोखले हैं और उनमे अध्यात्म की समझ बिल्कुल भी नहीं. उन्हें देख अध्यात्म की ओर से मेरा मोह भंग होने लगा. बीच में मैं कम्मुनिज्म की ओर भी मुड़ा. यहाँ तक कि अपने भारतीय परंपरा और संस्कृति से भी नफरत के भाव पनपने लगे. अंतत: गुरूजी से मिलना हुआ और तब जा कर अध्यात्म के प्रति मेरी आस्था पुनर्स्थापित हुई..तब मैंने जाना अध्यात्म के सही मायने क्या हैं.
]>आपने आई आई टी से शिक्षा प्राप्त करने के बाद नौकरी की, और अध्यात्म के लिए एक इंजिनिअर की नौकरी छोड़ दी. क्या देश ने आपके रूप में एक इंजिनिअर खो दिया?
देश ने कल-कारखानों वाले एक इंजिनिअर को अवश्य खोया है, लेकिन लोग और समाज रचने –गढ़ने वाले एक इंजिनिअर को प्राप्त भी किया है.. ( निश्चिन्त भाव से हँसते हुए) ..मैं आज एक बेहतर , शांत और मजबूत समाज बनाने की इंजिनिअरिंग में लगा हूँ..जो सिर्फ मशीन ही नहीं बनाता , बल्कि मशीन भी बनाता है.
>आज के युवाओं की मूल समस्या क्या है?
मुझे लगता है, अब समय आ गया है, जब हम युवाओं को महज एक समस्या के तौर पर ना देखें. हमें उन्हें समग्रता से स्वीकारने आना होगा. और उन्हें भी स्वयं से प्यार करना सीखना होगा. उनके अंदर असीम उर्जा है. जरुरत है तो बस उस ऊर्जा को सही दिशा देने की. चैनेलाईज़ करने की. जब उनकी ऊर्जा का सकारात्मक तरीके से प्रयोग नहीं हो पाता,उनके अंदर वही ऊर्जा क्रोध और फ्रस्ट्रेशन में ट्रांसफोर्म ( रूपांतरित) हो जाती है.
>ठीक है, पर इन सबका प्रायोगिक ( प्रैक्टिकल) उपाय क्या है? कैसे देखते हैं आप इन सब चीजों को? आपका अनुभव क्या है?
उन्हें क्रिएटिव और पॉजिटिवली इन्वोल्व रखने की जरुरत है. हमें भी उन्हें जज करना छोड़ना होगा. कोलेज के नॉलेज के अलावा उन्हें लाइफ स्किल्स सिखाने की जरुरत है. हमें उन्हें सिर्फ नौकरी प्राप्त करने के उद्देश्य से शिक्षित नहीं करना चाहिए. खास कर बिहार और झारखण्ड के पेरेंट्स में ये मनोवृति ज्यादा है.बल्कि खेल, म्यूजिक, निजी व्यवसाय की ओर भी उन्मुख करना चाहिए. मैं जब आई आई टी में था,मैंने जॉब को लेकर एक पूरी अंधी दौड को देखा है और ये भी देखा है लोग आपको कैसे सिर्फ मिली हुई अच्छी पैकेज के आधार पर तौलते हैं. मैं ये नहीं कह रहा, नौकरी और पैकेज जरुरी नहीं हैं. मैं सिर्फ इतना कह रहा हूँ, कि उन पैकेज और नौकरियों से ज्यादा कीमती आपकी स्वस्थ जिंदगी और आप खुद हैं. युवाओं को चाहिए वो अपना कैरियर लोगों को फौलो करते हुए न बनायें, बल्कि अपने पैशन का पीछा करें. ये उनको स्ट्रेस-फ्री और एक सही सफल इंसान बनाएगा.
>आज जब आप अपने सहपाठियों की ओर देखते हैं, स्वयं को कहाँ खड़ा पाते हैं?
मेरे सारे सहपाठी कहते हैं, “हम सभी तो जॉब कर रहे हैं, पर आज तुम वो कर रहे हो, जिसे तुमने करना चाहा”. मैं भी उनसे सहमत हूँ. मैं आज खुश , संतुष्ट और सशक्त हूँ..( मुस्कराहट ..)
>क्या आज आपके माता-पिता आपसे खुश हैं?
वो मुझ पर और मेरे सेवा-कार्य दोनों पर गौरवान्वित हैं. उन्हें मुझ पर फक्र है. मेरे बाबूजी, जो बिहार इलेक्त्रीसिटी बोर्ड से सेवा निर्वित हुए हैं, अक्सर मुझसे कहते है, बेटा आज तुम वो कर रहे हो, जिसे कार्यान्वित करने का हौसला मैं भी ना कर सका.
>युवाओं के लिए कोई सन्देश?
मैं सिर्फ इतना कहूँगा, आप अपने सोच के दायरे को बढ़ाएं, और अपनी जड़ों को गहरा करें. आप वो बनें, जो आप बनना चाहते हैं, और आप वो करें जो आप जिंदगी में करना चाहते हैं. अंधी दौड़ का हिस्सा न बनें. सफल इंसान वही है, जो आनंदित है.
पेश है विनय भरत से हुई उनकी बातचीत -
>आप अपने शैक्षणिक पृष्ठभूमि के बारे में बताएं?
मैं मूलत: भागलपुर का हूँ और अपनी उच्च शिक्षा आई आई टी ( बी एच यू ) से मेकैनिकल इंजीनियरिंग में प्राप्त किया है.
>अध्यात्म के क्षेत्र में आपकी रुझान किस उम्र में हुई?
ऐसे तो अध्यात्म में मेरी रुझान बचपन से थी, पर मैंने थोड़े समय बाद ये महसूस करना शुरू किया कि अध्यात्म से जुड़े कई लोग खोखले हैं और उनमे अध्यात्म की समझ बिल्कुल भी नहीं. उन्हें देख अध्यात्म की ओर से मेरा मोह भंग होने लगा. बीच में मैं कम्मुनिज्म की ओर भी मुड़ा. यहाँ तक कि अपने भारतीय परंपरा और संस्कृति से भी नफरत के भाव पनपने लगे. अंतत: गुरूजी से मिलना हुआ और तब जा कर अध्यात्म के प्रति मेरी आस्था पुनर्स्थापित हुई..तब मैंने जाना अध्यात्म के सही मायने क्या हैं.
]>आपने आई आई टी से शिक्षा प्राप्त करने के बाद नौकरी की, और अध्यात्म के लिए एक इंजिनिअर की नौकरी छोड़ दी. क्या देश ने आपके रूप में एक इंजिनिअर खो दिया?
देश ने कल-कारखानों वाले एक इंजिनिअर को अवश्य खोया है, लेकिन लोग और समाज रचने –गढ़ने वाले एक इंजिनिअर को प्राप्त भी किया है.. ( निश्चिन्त भाव से हँसते हुए) ..मैं आज एक बेहतर , शांत और मजबूत समाज बनाने की इंजिनिअरिंग में लगा हूँ..जो सिर्फ मशीन ही नहीं बनाता , बल्कि मशीन भी बनाता है.
>आज के युवाओं की मूल समस्या क्या है?
मुझे लगता है, अब समय आ गया है, जब हम युवाओं को महज एक समस्या के तौर पर ना देखें. हमें उन्हें समग्रता से स्वीकारने आना होगा. और उन्हें भी स्वयं से प्यार करना सीखना होगा. उनके अंदर असीम उर्जा है. जरुरत है तो बस उस ऊर्जा को सही दिशा देने की. चैनेलाईज़ करने की. जब उनकी ऊर्जा का सकारात्मक तरीके से प्रयोग नहीं हो पाता,उनके अंदर वही ऊर्जा क्रोध और फ्रस्ट्रेशन में ट्रांसफोर्म ( रूपांतरित) हो जाती है.
>ठीक है, पर इन सबका प्रायोगिक ( प्रैक्टिकल) उपाय क्या है? कैसे देखते हैं आप इन सब चीजों को? आपका अनुभव क्या है?
उन्हें क्रिएटिव और पॉजिटिवली इन्वोल्व रखने की जरुरत है. हमें भी उन्हें जज करना छोड़ना होगा. कोलेज के नॉलेज के अलावा उन्हें लाइफ स्किल्स सिखाने की जरुरत है. हमें उन्हें सिर्फ नौकरी प्राप्त करने के उद्देश्य से शिक्षित नहीं करना चाहिए. खास कर बिहार और झारखण्ड के पेरेंट्स में ये मनोवृति ज्यादा है.बल्कि खेल, म्यूजिक, निजी व्यवसाय की ओर भी उन्मुख करना चाहिए. मैं जब आई आई टी में था,मैंने जॉब को लेकर एक पूरी अंधी दौड को देखा है और ये भी देखा है लोग आपको कैसे सिर्फ मिली हुई अच्छी पैकेज के आधार पर तौलते हैं. मैं ये नहीं कह रहा, नौकरी और पैकेज जरुरी नहीं हैं. मैं सिर्फ इतना कह रहा हूँ, कि उन पैकेज और नौकरियों से ज्यादा कीमती आपकी स्वस्थ जिंदगी और आप खुद हैं. युवाओं को चाहिए वो अपना कैरियर लोगों को फौलो करते हुए न बनायें, बल्कि अपने पैशन का पीछा करें. ये उनको स्ट्रेस-फ्री और एक सही सफल इंसान बनाएगा.
>आज जब आप अपने सहपाठियों की ओर देखते हैं, स्वयं को कहाँ खड़ा पाते हैं?
मेरे सारे सहपाठी कहते हैं, “हम सभी तो जॉब कर रहे हैं, पर आज तुम वो कर रहे हो, जिसे तुमने करना चाहा”. मैं भी उनसे सहमत हूँ. मैं आज खुश , संतुष्ट और सशक्त हूँ..( मुस्कराहट ..)
>क्या आज आपके माता-पिता आपसे खुश हैं?
वो मुझ पर और मेरे सेवा-कार्य दोनों पर गौरवान्वित हैं. उन्हें मुझ पर फक्र है. मेरे बाबूजी, जो बिहार इलेक्त्रीसिटी बोर्ड से सेवा निर्वित हुए हैं, अक्सर मुझसे कहते है, बेटा आज तुम वो कर रहे हो, जिसे कार्यान्वित करने का हौसला मैं भी ना कर सका.
>युवाओं के लिए कोई सन्देश?
मैं सिर्फ इतना कहूँगा, आप अपने सोच के दायरे को बढ़ाएं, और अपनी जड़ों को गहरा करें. आप वो बनें, जो आप बनना चाहते हैं, और आप वो करें जो आप जिंदगी में करना चाहते हैं. अंधी दौड़ का हिस्सा न बनें. सफल इंसान वही है, जो आनंदित है.
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